Tuesday, November 26, 2019
India Vision 2035: Vision Ease of Living
Sunday, November 24, 2019
The Issue of Internet Governance
The Concept of Critical Digital Infrastructure
Thursday, July 11, 2019
My views on budget expectations on India Today TV
https://www.indiatoday.in/budget-2019/video/great-expectations-can-union-budget-fix-the-economy-1554234-2019-06-22
Sunday, July 7, 2019
My views on start up asks from Budget 2019
Union Budget 2019 as published in Dainik Jagran (in Hindi)
बड़े सपने दिखाने वाला बजट
तमाम मौजूदा चुनौतियों का समाधान निकालने की कोशिश करता यह बजट भविष्य के लिए दिशा दिखाने वाला भी रहा
जयजीत भट्टाचार्य
प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल के पहले आम बजट के जरिये सरकार ने एक खास संदेश दिया है। पांच ट्रिलियन डॉलर यानी पांच लाख करोड़ रुपये की अर्थव्यवस्था बनाने का लक्ष्य इस संदेश के मूल में है। इसके लिए हालिया बजट में कई कदम उठाए गए हैं। हालांकि वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी जैसे अहम सुधारों और आर्थिक स्तर पर नियमित नीतियों के प्रवर्तन से बजट की महत्ता पहले जैसी भले न रह गई हो, मगर यह अभी भी अर्थव्यवस्था और उसे लेकर सरकार के रवैये की झलक जरूर पेश करता है। उसी कड़ी में तमाम वर्तमान चुनौतियों का समाधान निकालने की कोशिश करता यह बजट भविष्य के लिए दिशा दिखाने वाला भी रहा। इसमें सभी के लिए कुछ न कुछ करने का प्रयास तो किया है, लेकिन फिर भी कुछ मोर्चों पर कमी-बेशी रह गई।
इसमें कोई संदेह नहीं कि बीते कुछ समय से आर्थिक गतिविधियां सुस्त पड़ी हैं। तमाम आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह कर्ज के प्रवाह का अवरुद्ध होना यानी क्रेडिट फ्लो कमजोर होना है। बैंकों में गैर निष्पादित आस्तियों यानी एनपीए के बढऩे के कारण नए कर्ज देने में उनके हाथ बंध गए। इसके चलते क्रेडिट ग्र्रोथ का आंकड़ा 5.8 प्रतिशत पर रुक गया। ऐसे में कर्ज की रफ्तार बढ़ाने के लिए सरकार को तात्कालिक रूप से कदम उठाने की आवश्यकता थी। बजट में सरकार ने यह कदम उठाया। इसके तहत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 70,000 करोड़ रुपये की पूंजी मुहैया कराई जाएगी। पुनर्पूंजीकरण के इस कदम के अलावा वित्त मंत्री ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों यानी एनबीएफसी को सशक्त बनाने का एलान किया है। इससे भी कर्ज के मोर्चे पर तंगहाली दूर होगी। सरकार नकद आरक्षित अनुपात यानी सीआरआर को कम करने की दिशा में भी कुछ कदम उठा सकती थी। हालांकि यह पूरी तरह सरकार के क्षेत्राधिकार में नहीं, बल्कि रिजर्व बैंक के दायरे में आता है। मगर इससे जुड़े कानून में संशोधन की मंशा दिखाकर सरकार रिजर्व बैंक को संदेश तो दे ही सकती थी।
सरकार ने पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की महत्वाकांक्षा व्यक्त की है। लोगों को सशक्त बनाए बिना यह संभव नहीं है। इसीलिए सरकार ने अंत्योदय पर पूरा ध्यान केंद्रित किया है। इसके तहत एक साथ कई मोर्चों पर कदम उठाया जाएगा जिससे ग्र्रामीण अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा संबल मिलेगा। इसमें कृषि एवं कृषि आधारित उद्योगों को मजबूत बनाए जाने का प्रस्ताव है। ग्र्रामीण इलाकों में सड़कों का जाल और तेजी से बिछाया जाएगा जिससे आवाजाही एवं सामान की ढुलाई और सुगम होगी। इसी तरह जलमार्गों पर ध्यान देने की सरकारी नीति भी बहुत उपयोगी कही जाएगी। इससे न केवल प्रदूषण कम होगा, बल्कि ऐसे तमाम रोजगार भी सृजित होंगे जिनमें अपेक्षाकृत कम कौशल की दरकार होती है। सरकार द्वारा वाटर ग्र्रिड और गैस ग्र्रिड बनाए जाने की घोषणाएं स्वागतयोग्य हैं। इसी तरह बुनियादी ढांचे में सौ लाख करोड़ रुपये का निवेश भी बाजी पलटने वाला साबित होगा।
सालाना 400 करोड़ रुपये टर्नओवर वाली कंपनियों के लिए कारपोरेट टैक्स की दर घटाकर 25 प्रतिशत करना भी उद्योग जगत के लिए एक बड़ी राहत है। पहले यह सीमा 250 करोड़ रुपये थी। इससे करीब 99.3 प्रतिशत कंपनियां कारपोरेट टैक्स की न्यूनतम दर के दायरे में आ गई हैं। इससे कंपनियों के पास नए निवेश के लिए ज्यादा गुंजाइश बनेगी और इसका असर रोजगार सृजन पर भी देखने को मिलेगा। वैसे भी किसी अर्थव्यवस्था की तरक्की में एक अहम पहलू यही होता है कि वहां करों की दर तार्किक बनाई जाए। ऐसे में इस दिशा में सरकार का यह कदम सही है।
सामाजिक सुरक्षा को लेकर भी सरकार बहुत गंभीर नजर आई। बजट में ग्र्रामीण और शहरी भारत दोनों पर बराबर ध्यान दिया गया है। इसमें किसानों और कारोबारियों के लिए पेंशन का प्रावधान खासा उल्लेखनीय है। देश के एक बड़े तबके को कृषि संबंधी गतिविधियों से बाहर निकालने के लिए प्रयासों की जरूरत है। वहीं खुदरा बाजार में बड़े खिलाडिय़ों के आने से छोटे कारोबारियों के लिए हालात मुश्किल हो रहे हैं तब हमें उनके लिए कुछ सामाजिक सुरक्षा के उपाय तो करने ही होंगे। ऊंची वृद्धि की ओर छलांग लगाने से पहले एक सुरक्षा घेरा बना लेना हमेशा उपयोगी साबित होता है।
अर्थव्यवस्था में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित करने में मोदी सरकार खासी सक्रिय रही है। इसी सिलसिले को और आगे बढ़ाते हुए बजट में एक खाते से सालाना एक करोड़ रुपये से अधिक लेनदेन पर दो प्रतिशत टीडीएस लगाने का प्रस्ताव है। प्रस्ताव के रूप में तो यह अच्छा कदम है, लेकिन लोग दूसरे खाते के माध्यम से इसका तोड़ निकाल लेंगे। हालांकि यह अच्छी पहल है और सरकार भविष्य में इस मोर्चे पर सख्त प्रावधान करके इसका लाभ उठाने की गुंजाइश खत्म कर सकती है।
इसी तरह स्टडी इन इंडिया भी एक महत्वाकांक्षी पहल है। मगर इसके लिए नियमों को आसान बनाने के साथ ही शोध एïवं अनुसंधान के मोर्चे पर भी हालात सुधारने होंगे। हालांकि नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना से इस मुहिम में कुछ मदद मिलेगी, लेकिन इसका पूरी तरह से लाभ उठाने के लिए हमें नामी-गिरामी अंतरराष्ट्रीय संस्थानों को भारत में उनके परिसर स्थापित करने की अनुमति देनी होगी। इससे न केवल विदेशी छात्रों को भारत में अध्ययन के लिए आकर्षित करने में मदद मिलेगी, बल्कि उच्च अध्ययन के लिए बड़ी तादाद में विदेश जाने वाले छात्रों को भी देश में पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा। इससे बड़े स्तर पर विदेशी मुद्रा की बचत हो सकती है जो हमारे छात्र विदेशों में जाकर खर्च करते हैं।
हालांकि मध्य वर्ग को राहत देने के लिए सरकार ने बेहद अमीर तबके पर सेस के साथ आयकर का बोझ बढ़ा दिया है। यह जरूर एक प्रतिगामी कदम दिखता है, क्योंकि इससे कर चोरी या दूसरे देशों में निवेश का चलन बढ़ सकता है। हालांकि वित्तीय तंत्र में बढ़ी पारदर्शिता और कई देशों के साथ सूचना विनिमय के समझौतों से ऐसी आशंकाएं कमजोर लगती हैं।
कुल मिलाकर सरकार ने बजट में कई ऐसे कदम उठाए हैं जो अर्थव्यवस्था में सुस्ती को दूर करने के साथ ही सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। फिर भी कर्ज प्रवाह को व्यापक रूप से सुगम बनाने और कृषि पर निर्भरता घटाने के विषय पर बजट मौन है। हमें यह ध्यान रखना होगा कि पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था का सपना देश की साठ प्रतिशत आबादी को कृषि कार्यों से जोड़कर पूरा नहीं हो सकता। यहां तक कि ब्राजील और चीन जैसे हमारे समवर्ती देशों में भी समय के साथ कृषि पर निर्भरता घटी है। हमें भी ऐसा ही करना होगा। इसके लिए बजट में कोई ठोस योजना होती तो यह बढिय़ा बजट और भी बेहतर होता।
(लेखक सेंटर फॉर डिजिटल इकोनॉमी पॉलिसी रिचर्स के प्रेसिडेंट हैं)
Saturday, June 29, 2019
My views on start up asks from Budget 2019
Digital India with India Today
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Saturday, June 22, 2019
Monday, June 17, 2019
Need for Electrification of Highways using Electric Mules to solve the Electrification of Inter-city Transportation
Friday, June 14, 2019
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Monday, March 4, 2019
My views on currency depreciation last year on CNN TV18
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How Easy is it to really do Doing Business in India?
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First appeared in Mint https://www.livemint.com/Opinion/j9Uew2P8hAynnV9dt42cxJ/Opinion--Contract-enforcement-needs-to-be-improved-on-war-f.html
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